November 2024 Grah Gochar, कौन से ग्रह बदलेंगे राशि नवम्बर महीने में, किन राशियों को मिलेगा फायदा, November Masik Rashifal, नवम्बर में ग्रह गोचर, planetary transits in November 2024 | नवंबर 2024 का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण है क्यूंकि इस महीने देव उठनी ग्यारस है, चातुर्मास की समाप्ति होगी, विवाह के महुरत शुरू हो जायेंगे, कार्तिक पूर्णिमा का पर्व मनाया| Vedic jyotish के अनुसार एक निश्चित समय में हर ग्रह अपना राशि परिवर्तन करते हैं जिसे की गोचर कहा जाता है, ग्रहों के बदलाव के कारण लोगो के जीवन, वातावरण, व्यापार आदि में बड़े बदलाव देखने को मिलते हैं | November 2024 Grah Gochar: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवम्बर में बहुत से ग्रह राशी बदलेंगे साथ ही चाल भी बदलेगी जिसके कारण जन जीवन में, मौसम में काफी बदलाव देखने को मिलेंगे | ज्योतिष अनुसार नवंबर 2024 की कुछ ख़ास बातें : इस साल नवम्बर का महीना अमावस्या तिथि से शुरू होगा और अमावस्या तिथि पर ही समाप्त होगा | अंग्रजी केलेंडर के हिसाब से ये २०२४ का ग्यारहवां महीना है | गोचर कुंडली में 4 बड़े बदलाव होंगे जिसका असर हमे सभी तरफ देखने को मिलेगा |
Mission Safalta Janiye Safalta Ke Rahasya Ko, अगर सफलता आपका लक्ष्य है , अगर सफलता के लिए आप लालाइत हैं तो फिर ये लेख आपके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा.
Mission Safalta Ke Rahasya Ko Bhaag-1 |
जानिए ! किस प्रकार आप पा सकते हैं –
एक प्रभावी व्यक्तित्त्व .................
एक प्रतिष्ठित सामाजिक जीवन ..............................
धन, मान सम्मान ....................
एक खुशहाल जीवन ......................
Mission सफलता :
सफलता कौन नहीं चाहता है ? क्या हम सफलता नहीं चाहता , क्या हमारे मित्र सफलता नहीं चाहते, क्या मेरे भाई सफलता नहीं चाहते, क्या हमारे पड़ोसी सफलता नहीं चाहते, क्या हमारे पूर्वज सफलता नहीं चाहते थे और क्या हमारे आने वाली पीढ़ी सफलता नहीं चाहेगी.
हर कोई सफलता चाहता था, चाहता है और चाहता रहेगा. परन्तु यहाँ प्रश्न ये है की आखिर ये सफलता है क्या? क्यूँ इसे हर कोई पसंद करता है, क्यों इसके लिए व्यक्ति दिन रात मेहनत करता रहता है. क्यों इसके बिना जीवन अर्थहीन हो जाता है.
सफलता ! क्या ये एक भावना है?, क्या ये एक अहसास है ?, क्या ये एक स्त्री है ? , क्या ये एक पुरुष है?, क्या ये एक रूपया है, क्या मान-सम्मान है?.
आइये समझते है सफलता के रहस्यमय संसार को:
सफलता एक निरंतर चलने वाली क्रिया है न की अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लेना है. इसे एक उदाहरण से समझते हैं- जैसे कोई कलेक्टर, इंजिनियर , डॉक्टर, नेता आदि बनना चाहता है और बन भी जाता है तो क्या ये सफलता कहलायेगी. साधारण तौर पर तो सब यही कहेंगे की व्यक्ति सफल हो गया परन्तु सत्य कुछ और है. वास्तव मे यहाँ से तो सफलता का रास्ता शुरू होता है. आप जानना चाहेंगे कैसे – वास्तव मे किसी पोस्ट को प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं होता है उस पोस्ट पर रहकर अपने कर्त्तव्यों को सुचारू रूप से करते रहना ही वास्तव मे सफलता कहलायेगा. जैसे की कोई प्रशासनिक अधिकारी तभी सफल कहलायेगा जब वो अपने शासकीय कार्यो को ठीक तरह से करेगा, एक डॉक्टर तभी सफल कहलायेगा जब वो अपने मरीजो का इलाज सही करेगा, एक अध्यापक तभी सफल कहलायेगा जब वो अपने विद्यार्थियों को विषय ठीक से पढ़ायेगा.
जब तक सभी अपने कर्त्तव्यों का पालन, अपने अधिकारों और शक्तियों का उपयोग सहि तरीके से करते रहेंगे तब तक वो सफल कहलायेंगे.
अतः हम ये कह सकते हैं की निरंतर अपने कार्यों को सुचारू रूप से सभी के हित मे करते रहने का नाम ही सफलता है.
आइये अब जानते हैं की सफलता की उपलब्धियां :
जब हम सफलता के रस्ते पर आगे बढ़ते रहते हैं तो हमे अनेक उपलब्धियां प्राप्त होती है जैसे –
मान-सम्मान, धन, आत्म –शक्ति, एक दिव्य अहसास, शांति, संतोष, दया, धीरता, ईश्वरीय कृपा, सभी का प्रेम और कुछ ख़ास अनुभव.
हममे से हर व्यक्ति के जीवन मे सफलता बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है परन्तु फिर भी हममे से अधिकतर लोग इससे अछूते हैं. आखिर क्यूँ, क्यों हर व्यक्ति सफल नहीं है, क्यों हर शख्स खुश नहीं , क्यों हर कोई अपनी जिम्मेदारियों को पूर्ण ईमानदारी से नहीं निभा पाटा, क्यों व्यक्ति मे इतनी अशांति है, क्यों वो परेशान है.
आखिर वो कौन सा राज है जिसके द्वारा एक व्यक्ति सफलता के रास्ते पर चलता जाता है, वह कौन सा सूत्र है जिनके मिलने पर व्यक्ति अचनक उन्मुक्तता का अनुभव करता है. वह कौन सा खजाना है जिसके मिलने पर व्यक्ति प्रसन्न रहने लगता है, वह कौन सी शक्ति है जिसके मिलने पर व्यक्ति साधारण होकर भी असाधारण हो जाता है.
अगर हम असफलताओं के कारणों पर विचार करें तो अनेक कारन हमारे सामने आयेंगे जैसे – भय, लक्ष्य का न होना, सही मार्गदर्शन का न मिलना, समय पर निर्णय न लेने की स्थिति, आत्मशक्ति की कमी, कई अनचाहे प्रलोभन, शारीरिक अक्षमता , कर्म के प्रति अरुचि आदि.
अगर इन सब कारणों पर काबू पा लिया जाए तो इसमे कोई शक नहीं की हम सभी सफल हो सकते हैं.
आइये अब जानते हैं एक विशेष ग्रन्थ के बारे में जो की सफलता के लिए कर्म प्रधान जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है.
भगवद्गीता :
एक एक चमत्कारिक, असीम महिमायुक्त ग्रन्थ है जिसे सभी महापुरुषों ने समस्त वेदों, उपनिषदों आदि के सार ग्रन्थ के रूप मे मान्यता दी है.
यही एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे पूर्ण सफलता के रहस्य को उजागर किया गया हैं. गीता मे किसी मत का आग्रह नहीं है, बल्कि केवल जीव के कल्याण अथवा सफलता का आग्रह है. यही एकमात्र ग्रन्थ है जिसने कर्म के महत्त्व को स्वीकार किया है, सभी को कर्म करने की प्रेरणा दि है, साथ ही ये भी बताया है की किस प्रकार हम एक सफल कर्म योगी बन सकते हैं. इस ग्रन्थ मे उन सभी सवालो के जवाब मौजूद है जो की एक व्यक्ति के अन्दर इस संसार मे कर्म करते हुए उठा करते हैं.
भगवद्गीता मे विशेष ये है की –
ये हमे बताती है की सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति ईच्छा के नहीं बल्कि कर्म के अधीन हैं, अतः कर्म के प्रेरणास्त्रोत बन कर ये ग्रन्थ सभी को सफलता का मार्ग दिखा रही है.
आइये अब जानते हैं की सफलता के मार्ग मे कौन कौन सी बाधाएं आती है ?
Mission Safalta Janiye Safalta Ke Rahasya Ko, अगर सफलता आपका लक्ष्य है , अगर सफलता के लिए आप लालाइत हैं तो फिर पढ़िए ये लेख.भय :
आज के समय मे हर कोई भय ग्रस्त है, भय मौत का ही नहीं परन्तु एक भ्रमित मान-सम्मान के खोने का, भय है धन के चले जाने का, भय है पुराने गलत किये गए कर्मो के खुलासे का, भय है भविष्य का , भय है अपनी पहचान खोने का , भय है असफल होने का .
भय का कारण :
इस भय का मुख्या कारन है बुद्धहि का सैम अवस्था मे न रहना, जिसके कारन हम अनेक प्रकार के अच्छे बुरे क्रिया कलापों को जन्म देते रहते हैं और नतीजा होता है –भय.
गीता के अध्याय 2 के ४०वे श्लोक मे बताया गया है की व्यक्ति अगर सैम बुद्धि का प्रयोग थोडा सा भी कर ले तो वो महा भय से भी मुक्त हो सकता है.
यहाँ ये भी जानना जरुरी है की जब तक भय गलत कार्यो को न करने की प्रेरणा देता है तब तक तो वरदान साबित होता है परन्तु ये कई बार सही और अच्छे कार्यो को करने मे भी बाधक सिद्ध होता है , उस वक्त ये भय हमारी सफलता मे बाधक हो जाता है. अतः हमारे अन्दर उत्पन्न होने वाले भय का सही विश्लेषण कर अनावश्यक भय से छुटकारा पा लेना चाहिए.
राग-द्वेष :
राग और द्वेष से भी कार्य करना सफलता मे बहुत बाधक है कारण की इस संसार मे सभी कुछ परिवर्तनशील है. आज जिसको हम जिस कारन से पसंद करते हैं उसे ही कल किसी कारण से नापसंद भी कर सकते हैं.
गीता मे राग –द्वेष से दूर रहकर कार्य करने की प्रेरणा दी गई है. इससे ये फायदा होगा की हमारे प्रति लोगो का विश्वास बढ़ेगा, सभी हमे सहयोग करेंगे और हम सफलता की और तेजी से बढ़ेंगे.
गीता के अध्याय ३ के ३४वे श्लोक मे राग द्वेष को मनुष्य का कल्याण मार्ग मे विघ्न उत्पन्न करने वाला महान शत्रु कहा गया है.
मन की चंचलता :
मन की चंचलता भी हमारे सफलता मे बहुत बड़ी बाधक है गीता मे अध्याय 6 के ३४वे श्लोक मे अर्जुन कृष्ण से कहते है की “है कृष्ण ये मन बड़ा चंचल है तथा बड़ा दृढ़ और बलवान है इसिलिये इसका वश मे करना मैं वायु की भाति अती दुष्कर मानता हूँ .”
इस चंचलता के कारन भी व्यक्ति अपने किसी एक लक्ष्य की और दृढ़ता से नहीं बढ़ पाता . अतः मन पर लगाम लगाना जरुरी है और इसे वश मे करने के लिए गीता मे अभ्यास योग अर्थात स्थिति के लिए बारम्बार यत्न करने की प्रेरणा दी गई है.
इच्छा शक्ति की कमी :
इच्छा शक्ति हर व्यक्ति के जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. एक व्यक्ति के पास सबकुछ हो, अच्छा शारीर हो, अच्छा मन हो , मस्तिष्क हो परन्तु इच्छा शक्ति की कमी हो तो वह सफल नहीं हो सकता. प्रबल इच्छा शक्ति की सहायता से व्यक्ति पहाड़ जैसी मुसीबत से भी टकरा सकता है.
इच्छा शक्ति मन की वह शक्ति है जो हमे उचित लगने वाले कार्यो को करने एवं अनुचित लगने वाले कार्यो से बचने मे समर्थ बनाती है. शुद्ध आत्मा जब माया मे आबद्ध होती है तो उसकी प्रथम अभिब्यक्ति इच्छा के रूप मे होती है, एक संत के अनुसार इच्छा जड़ और चेतन , प्रकाश और अन्धकार इन लड़ियों से मिलकर बनी है.
लक्ष्य हीन होना:
ये भी सफलता के मार्ग मे बहुत बड़ा विघ्न है, लक्ष्यहीन जीवन आसमान मे डोर रहित पतंग के सामान होता है जो किसी भी दिशा की और चल देती है . जिस प्रकार घोड़े की दोनों आँखों मे एक कवर लगाया जाता है जिससे की वो अपने मार्ग मे ही बढे , ठीक उसी प्रकार मन को भटकने से रोकने के लिए जीवन मे कोई लक्ष्य होना चाहिए जो उसे सही दिशा दिखाती रहे.
सही मार्गदर्शन की कमी :
कार्य कैसा भी हो, मार्ग कैसा भी हो, बाधा विघ्न हर जगह है, ऐसे मे बिना मार्गदर्शन के बढ़ना अत्यंत कठिन होता है , अतः अगर हम सफलता की सीढियाँ चढ़ना चाहते हैं तो हमे किसी से मार्गदर्शन अवश्य लेना चाहिए जो अपने क्षेत्र के जानकार एवं अनुभवी हो क्यूंकि संतो ने कहा है की गुरु बिना ज्ञान नहीं.
उचित – अनुचित मे भेद करने मे हमारी अक्षमता :
चूंकि हमे किसी भी विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं होता अतः हम उचित अनुचित में भेद करने मे सक्षम नहीं होते . ये भी हमारे लिए असफलता का कारन है. कई बार तो सब जानते हुए भी हम सहि गलत की पहचान नहीं कर पाते हैं .
पांडव गीता अथवा प्रपन्न गीता मे मे हमारे मूल भूत समस्या को इस प्रकार कहा गया है-
जानामि धर्म न च में प्रवृत्तिः |
जनाभ्यधर्म न च में निवृत्तिः ||
अर्थात मैं जानता हूँ की धर्म क्या है, उचित क्या है, अच्छा क्या है परन्तु उसे करने मे मेरी प्रवृत्ति नहीं होती है और मै ये भी जनता हूँ की क्या अनुचित है , अधर्म है, बुरा है, पाप है परन्तु मैं उसे बिना किये रह नहीं पाता | इस स्थिति से बचने के लिए हमे किसी अनुभवी से मार्गदर्शन लेना चाहिए साथ ही अपने विवेक का पूर्ण स्तेमाल करना चाहिए.
लाज -शर्म :
अगर हम अपना आत्म परिक्षण करें तो हमे पता चलेगा की हमे उन कार्यो को करने मे तो लाज नहीं आती जिनमे आनी चाहिए और हम जीवनचर्या सा लिए उपयोगी कर्मो को करने मैं शर्माते रहते हैं. जिससे हमारी सफलता मे बाधा पहुचती है.
संशय :
हमे अपनी ही ताकत और विशेषताओं पर संशय रहता है. जिसके कारन हम कई अच्छे कार्यो को भी करने से वंचित रह जाते हैं. अतः अपनी ताकत को पहचानिए और कर लीजिये दुनिया मुट्ठी मे.
धैर्य:
धैर्यहीन व्यक्ति कभी भी सफल नहीं हो सकता | हम अगर ये सोचे की किसी कार्य को चालू करते ही वह गति पकड़ ले तो ये संभव नहीं | क्यूंकि आप जन्म लेते ही युवा नहीं हो जाते हैं, आप सीधे कॉलेज मे नहीं पहुच जाते हैं, अतः अगर आप सफलता चाहते हैं तो आपको धीरे के गुण को बढाकर अपनी मंजिल की और बढ़ना होगा.
संगती :
हमारे बड़े –बूढ़ों ने कहा है की व्यक्ति की जैसी संगती होती है वैसी ही गति होती है. संगती आपकी सफलता या असफलता मे बहुत अहम् भूमिका निभाती है. संगती कभी भी निष्फल नहीं जाती .
कबीर जी कहते हैं –
कबीर खाई कोट की पानी पीवे न कोई |
जाय मिले जब गंग मे, सब गंगादक होय ||
अर्थात शहर के गंदे नाले का पानी कोई नहीं पीता परन्तु वही जाकर जब गंगा नदी मे मिल जाता है तो पवित्र गंगाजल हो जाता है.
आप अगर सफल होना चाहते है तो सफल लोगो की संगती कीजिये, न की उदासीन लोगो की | उन लोगो को खोजिये जो रचनात्मक हो , कुछ कर गुजरना चाहते हो और उनके साथ वक्त गुजारे. आप देखेंगे आपमे बहुत सकारात्मक परिवर्तन होने लगेगा.
स्वास्थ्य :
ऐसा कहा गया है की आपका स्वास्थ्य ही संपत्ति है और एक स्वस्थ शारीर मे ही स्वस्थ मस्तिष्क रह सकता है. स्वस्थ शारीर के न होने पर आप सफलता के बारे मे सोच तो सकते हैं परन्तु से हासिल नहीं कर सकते. अतः अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखे. इसके लिए अपने आहार, विहार और व्यायाम पर विशेष ध्यान दे.
प्रस्तुतीकरण/प्रेजेंटेशन :
अगर आप सफलता प्राप्त करना चाहते है तो आपका प्रस्तुतीकरण बहुत ही प्रभावशाली होना चाहिए. आपको अपने आपको कुछ इस तरह से प्रस्तुत करना है की दुसरो को लग्न चाहिए की आप अगर उनके साथ रहेंगे तो उन्हें बहुत लाभ हो सकता है. तभी वे आपका साथ देंगे. जिस प्रकार सोने चांदी से भरा घड़ा अगर मिटटी मे दबा हो तो किसी के काम का नहीं होता परंतु जैसे ही लोगो को उसका पता चलता है उसे लेने के लिए सब ही टूट पड़ते हैं. उसी प्रकार जैसे ही लोगो को आपके गुणों का पता चलेगा वे खुद ही आपके करीब आ जायेंगे. एक कहावत भी है –
“जंगल मे मोर नाचा किसने देखा ”| उसी प्रकार जब तक लोगो के सामने आपके विशेषताओ का प्रस्तुतीकरण नहीं होगा तब तक वह किसी काम का नहीं|
संपर्क:
अगर आपके पास कोई गुण है और आपका जन संपर्क बहुत अच्छा है तो ये मान लीजिये की आपकी कार्य करने की गति अपने आप बढ़ जायेगी. क्यूंकि लोग एक अपरिचित पर भरोसा करने मे थोडा समय लगते हैं. अतः ज्यादा लोगो से मिले और उन सब पर सकारात्मक प्रभाव छोड़े |
ये एक ऐसा गुण है जिसकी सहायता से हम हर क्षण का लाभ उठा सकते हैं . हमे सतर्क रहना है अपने अन्दर होने वाले परिवर्तनों से, हमे सतर्क रहना है अपने आस पास होने वाले परिवर्तनों से, हमे सतर्क रहना है बाजार मे होने वाले परिवर्तनों से | इससे हमे फायदा ये होगा की हम हर लाभदायक परिवर्तन का लाभ उठा सकते हैं और हर हानिकारक परिवर्तनों से अपने आपको बचा सकते हैं. एक कहावत है “सुअवसर आपके दरवाजे को बहुत ही अहिस्ते से खटखटाती है ”| अतः अगर हम सतर्क रहे तो सुअवसर के हर खटखटाहट को सुन सकते हैं और उसका लाभ उठा सकते हैं|
एक नजर मनोविज्ञान पर :
हर व्यक्ति चाहता है की उसकी बात कोई सुने, उसके किये गए कार्यो की कोई तारीफ करे, उसे कोई महत्त्व दे, वक्त आने पर उसकी कोई सहायता करे आदि. अगर हम दुसरो की इन आवाशायाक्ताओ की पूर्ती करने लगे तो इसमे कोई शक नहीं की हमारी आवश्यकताओ की पूर्ती अपने आप ही हो जायेगी और हमारी सफलता की गति बढ़ जायेगी.
सकारात्मक सोच रखे :
सकारात्मक सोच एक ऐसी रामबाण दावा है जो बड़े से बड़े संकतो से पार जाने की क्षमता हमारे अन्दर पैदा कर देती है | ये हर क्षण को सुअवसर मे बदलने मे हमारी बहुत सहायक है | इसके होने से सबसे बड़ा फायदा ये है की हम कभी भी उदासीन नहीं होंगे | क्यूंकि उदासीनता हमारी रचनात्मकता को ख़त्म कर देती है और रचनात्मकता ख़त्म होने का मतलब है की हम भी ख़त्म हो जायेंगे | अतः सोच को हमेशा सकारात्मक बनाए रखे |
जिम्मेदारियों को उठायें :
अक्सर ऐसा होता है की हम जिम्मेदारियों को उठाने से डरते हैं | जैसे ही कोई हमे नै जिम्मेदारी देना चाहता है , एक अज्ञात भय, संकोच हमे घेर लेता है | हमे लगता है हम उसको उठाने लायक नहीं है या अगर हम असफल हो गए तो क्या होगा | एक बात हमे याद रखना चाहिए की कोई भी व्यक्ति आपको बिना परखे जिम्मेदारी नहीं देगा और दूसरी बात हमे अपनी क्षमताओं को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए और तीसरी बात हर जिम्मेदारी हमारे महत्त्वो को बढ़ा देती है | हर जिम्मेदारी हमे ये मौका देती है की हम कुछ नया करके दिखा दे | अतः हमारे अस्तित्व को बनाए रखने मे जिम्मेदारी बहुत ही निर्णायक भूमिका निभाती है.
अपनी जानकारियों को बढायें एवं सुधारे :
इसे एक उदाहरण से समझते हैं – जैसे की कभी ऑफिसों का कार्य टाइपरायटरों से होता था परन्तु आज computers से होने लगा है. अगर हमे हाल ही मे स्तेमाल होने वाली अच्छी तकनीक का ज्ञान नहीं होगा तो हम दुसरो के मुकाबले पिछड जायेंगे. अतः सफलता के लिए जानकारियों को बढ़ाने के साथ साथ सुधारना भी जरुरी है.
असंभव कुछ नहीं :
एक बात हमे नहीं भूलना चाहिए की इस संसार मे जिसने भी कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य किया , कुछ रचनात्मक किया, विशेष किया कुछ अलग हट के किया उनके पास भी एक शारीर था जिसमे 2 हाथ , 2 पैर, 2 आँखे, 2 कान और एक मस्तिष्क था. और ये सब हमारे पास भी है फिर हम क्यूँ नहीं सफल हो सकते हैं. अपने दिमाग से असंभव शब्द को मिटा दे फिर देखिये जीवन जीने का अंदाज बदल जाएगा.
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