हनुमान तांडव स्त्रोत्रम, hanuman tandav strotram lyrics, भय नाशक || शक्तिदायक, क्या फायदे हैं हनुमान तांडव स्त्रोत के पाठ के ?|
Shree Hanuman Tandav Stotram:
संकटमोचन हनुमान जी की कृपा जिसपे भी हो जाये उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता है | कुंडली में ग्रह कितने भी कमजोर हो, शनि की साड़े साती चल रही हो या फिर धैया | शत्रु कुछ भी प्रयोग कर रहा हो तो ऐसे में हनुमानजी की कृपा से बचाव होता है और जीवन सफल होता है |
अगर रोज हनुमानजी की पूजा की जाए और उनके तांडव स्त्रोत्रम का पाठ किया जाए तो भक्त के जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।
जो लोग रोज नहीं कर सकते हैं उन्हें मंगलवार और शनिवार को तो विशेष रूप से हनुमान तांडव स्त्रोत्रम का पाठ करना चाहिए |
Hanuman Tandav Strotram Ke Fayde |
Hanuman tandav strot का पाठ सही उच्चारण के साथ किया जाए तो यह अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। इसके प्रतिदिन पाठ करने से श्री हनुमान जी की कृपा से शक्ति प्राप्त होती है, भय जाता रहता है | भूत प्रेत, रोग, दुर्घटना, काला जादू आदि का भय भी नहीं रहता है।
तो आइए पाठ करते हैं श्री हनुमत तांडव स्तोत्र का |
||अथ श्री हनुमत्ताण्डवस्तोत्रम् ||
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम् ॥ १॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम् ॥ ३॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥ ४॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥ ५॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥ ६॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥ ७॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥ ८॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा
न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥ ९॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥
॥ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् सम्पूर्णं ॥
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