Navgrah Kavach Stotra ke Fayde| नवग्रह कवच के फायदे| lyrics of navagrah kawach|
नवग्रह अर्थात सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू और केतु | इन 9 ग्रहों की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के जीवन पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है, जिसे कुंडली में देखा जा सकता है। नवग्रह कवच स्त्रोत्रम के शक्तिशाली पाठ है जिसके दैनिक पाठ से ग्रहों के अशुभ प्रभावों को दूर या कम किया जा सकता है।
नवग्रह कवच का पाठ करने वाले व्यक्ति के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है| नवग्रहों का प्रभाव कण कण पर है इसीलिए नवग्रहों की कृपा से सफलता प्राप्त करना संभव है |
वैदिक और तंत्र शास्त्र में नवग्रहों की प्रसन्नता के लिए अनेक उपाय दिए गए हैं जैसे की दान, मंत्र जाप, स्तोत्र, कवच आदि का पाठ सम्मिलित है |
नवग्रह कवच स्त्रोत्र के पाठ से बड़ी से बड़ी परेशानियां और बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसका नियमित रूप से नित्य पूजन करने से जीवन के चमत्कारी लाभ दिखने लगता है | नवग्रह कवच सभी प्रकार के कष्ट, शत्रु बाधा और स्वास्थ्य को दूर कर सकता है |
Navgrah Kavach Stotra ke Fayde |
नवग्रह कवच के लाभ:
- इस नवग्रह कवच का नियमित जाप करने से दीर्घायु के साथ धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- नवग्रह कवच से स्वस्थ संतान होती है |
- नवग्रह कवच सभी शत्रुओं को परास्त कर आपको विजयी बनाता है।
- नवग्रह कवच हर जगह सुरक्षा प्रदान करता है।
- जिनका विवाह नहीं हो रहा है उनको अच्छा जीवनसाथी मिलता है |
- इसके नियमित पाठ से दरिद्रता दूर होती है |
- विपत्तियों का नाश होता है और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
नवग्रह कवच का पाठ किनको करना चाहिए ?
जो व्यक्ति ग्रहों के अशुभ प्रभाव के कारण पीड़ित हैं, और किसी न किसी कारण से बार-बार असफलता का सामना कर रहे हैं, उन्हें नवग्रह कवच का नियमित पाठ करना चाहिए।
नवग्रह शांति के लिए नवग्रह कवच का पाठ करे|
जो लोग कर्म काण्ड करवाने में सक्षम नहीं है और अपने आपको समस्याओं से मुक्त करना चाहते हैं उन्हें Navagraha Kavach Strotram का पाठ करना चाहिए |
Navgrah Kavach Stotra in Hindi – नवग्रह कवच स्त्रोत्र
शिरो मे पातु मार्ताण्डो कपालं रोहिणीपतिः ।
मुखमङ्गारकः पातु कण्ठश्च शशिनन्दनः ॥ १ ॥
बुद्धिं जीवः सदा पातु हृदयं भृगुनन्दनः ।
जठरं च शनिः पातु जिह्वां मे दितिनन्दनः ॥ २ ॥
पादौ केतुः सदा पातु वाराः सर्वाङ्गमेव च ।
तिथयोऽष्टौ दिशः पान्तु नक्षत्राणि वपुः सदा ॥ ३ ॥
अंसौ राशिः सदा पातु योगाश्च स्थैर्यमेव च ।
गुह्यं लिङ्गं सदा पान्तु सर्वे ग्रहाः शुभप्रदाः ॥ ४ ॥
अणिमादीनि सर्वाणि लभते यः पठेद् धृवम् ।
एतां रक्षां पठेद् यस्तु भक्त्या स प्रयतः सुधीः ॥ ५ ॥
स चिरायुः सुखी पुत्री रणे च विजयी भवेत् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी धनमाप्नुयात् ॥ ६ ॥
दारार्थी लभते भार्यां सुरूपां सुमनोहराम् ।
रोगी रोगात्प्रमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ॥ ७ ॥
जले स्थले चान्तरिक्षे कारागारे विशेषतः ।
यः करे धारयेन्नित्यं भयं तस्य न विद्यते ॥ ८ ॥
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वङ्गनागमः ।
सर्वपापैः प्रमुच्येत कवचस्य च धारणात् ॥ ९ ॥
नारी वामभुजे धृत्वा सुखैश्वर्यसमन्विता ।
काकवन्ध्या जन्मवन्ध्या मृतवत्सा च या भवेत् ।
बह्वपत्या जीववत्सा कवचस्य प्रसादतः ॥ १० ॥
। इति ग्रहयामले उत्तरखण्डे नवग्रह कवचम संपूर्णम् ।
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