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Narayan Astra Mantra Ke Fayde Aur Lyrics

Narayan Astra Mantra Ke Fayde Aur Lyrics, क्यों पढना चाहिए नारायण अस्त्र मन्त्र, किनके लिए बहुत फायदेमंद है | नारायण अस्त्र, भगवान विष्णु की कृपा से भक्तो की रक्षा करते हैं जो भी नारायण अस्त्र मंत्र का पाठ करते हैं उनकी रक्षा स्वयं नारायण करते हैं | ये मंत्र एक शातिशाली कवच है जिसको भेदना इस ब्रह्माण्ड में किसी के बस की बात नहीं है |  इस मंत्र में भगवन श्री हरी से सभी प्रकार की बुरी शक्तियों से बचाने के लिए प्रार्थना की गई है जैसे बीमारियाँ, सभी प्रकार के दोष, सभी प्रकार के बाधाएं आदि | इस मंत्र में शत्रुओं के नाश के लिए भी प्रार्थना की गई है | जीवन का ऐसा कोई संकट नहीं जो नारायण अस्त्र मंत्र के पाठ से दूर नहीं हो सकता हो |  Narayan Astra Mantra Ke Fayde Aur Lyrics जो मनुष्य प्रतिदिन तीनो काल में नारायण अस्त्र का जाप करता है उसे दीर्घायु, स्वास्थ्य, धन, विद्या, पराक्रम और हर प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है ।  इसके विधान में बताया गया है की - जो कोई भी इस मंत्र का भक्ति और संयम के साथ पाठ करता है वह विष्णु जी की कृपा से सुरक्षित हो जाता है, कोई भी विष उसका  ...

Vedoktam Ratri Suktam in HIndi

 रात्रि सूक्तं, दुर्गा शप्तशती वेदोक्तं रात्रि सूक्तं, Durga Saptashati Vedoktam Ratri Suktam.

ऋग्वेद में इस शक्तिशाली सूक्तं का वर्णन मिलता है | इसमें 8 ऋचाएं मौजूद है और जिसमे की रात्रि देवी की महिमा को बताया गया है | रात्रि देवी जगत के सभी जीवों के कर्मो को देखती है और उसके अनुसार फल प्रदान करती है | देवी की कृपा से ही हम प्राणी सुख पूर्वक सोता है |

रात्रि सूक्तं, दुर्गा शप्तशती वेदोक्तं रात्रि सूक्तं, Durga Saptashati Vedoktam Ratri Suktam.
Vedoktam Ratri Suktam in HIndi

॥ अथ वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् ॥

ॐ रात्रीत्याद्यष्टर्चस्य सूक्तस्य कुशिकः सौभरो रात्रिर्वा

भारद्वाजो ऋषिः, रात्रिर्देवता,गायत्री छन्दः, देवीमाहात्म्यपाठे विनियोगः।


ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभिः।

विश्वार अधि श्रियोऽधित॥1॥


ओर्वप्रा अमर्त्यानिवतो देव्युद्वतः।

ज्योतिषा बाधते तमः॥2॥


निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती।

अपेदु हासते तमः॥3॥



सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि।

वृक्षे न वसतिं वयः॥4॥


नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः।

नि श्येनासश्चिदर्थिनः॥5॥

 रात्रि सूक्तं, दुर्गा शप्तशती वेदोक्तं रात्रि सूक्तं, Durga Saptashati Vedoktam Ratri Suktam.

यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये।

अथा नः सुतरा भव॥6॥


उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित।

उष ऋणेव यातय॥7॥


उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः।

रात्रि स्तोमं न जिग्युषे॥8॥

॥ इति ऋग्वेदोक्तं रात्रिसूक्तं समाप्तं। ॥


Meaning in Hindi: 

महत्तत्त्वादिरूप व्यापक इन्द्रियों से सब देशों में समस्त वस्तुओं को प्रकाशित करने वाली ये रात्रिरूपा देवी अपने उत्पन्न किये हुए जगत के जीवों के शुभाशुभ कर्मों को विशेष रूप से देखती हैं और उनके अनुरूप फल की व्यवस्था करने के लिए समस्त विभूतियों को धारण करती हैं |

ये देवी अमर हैं और सम्पूर्ण विश्व को नीचे फैलने वाली लता आदि को तथा ऊपर बढ़ने वाले वृक्षों को भी व्याप्त करके स्थित हैं; इतना ही नहीं, ये ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञानान्धकार का नाश कर देती हैं। 

परा चिच्छक्तिरूपा रात्रिदेवी आकर अपनी बहिन ब्रह्मविद्यामयी उषादेवी को प्रकट करती हैं, जिससे अविद्यामय अन्धकार का नाश हो जाता है। 

ये रात्रि देवी इस समय मुझ पर प्रसन्न हों, जिनके आने पर हम लोग अपने घरों में सुख से सोते हैं ठीक वैसे ही जैसे रात्रि के समय पक्षी वृक्षों पर बनाये हुए अपने घोंसलों में सुखपूर्वक शयन करते हैं। 

उस करुणामयी रात्रि देवी के अंक में सम्पूर्ण ग्रामवासी मनुष्य, पैरों से चलने वाले गाय, घोड़े आदि पशु, पंखों से उड़ने वाले पक्षी एवं पतंग आदि किसी प्रयोजन से यात्रा करने वाले पथिक और बाज आदि भी सुखपूर्वक सोते हैं। 

 रात्रि सूक्तं, दुर्गा शप्तशती वेदोक्तं रात्रि सूक्तं, Durga Saptashati Vedoktam Ratri Suktam.

हे रात्रिमयी चिच्छक्ति! तुम कृपा करके वासनामयी वृकी तथा पापमय वृक को हमसे अलग करो। काम आदि तस्कर समुदाय को दूर हटाओ। तदनन्तर हमारे लिए सुख पूर्वक तरने योग्य हो जाओ- मोक्षदायिनी एवं कल्याणकारिणी बन जाओ। 

हे उषा! हे रात्रि की अधिष्ठात्री देवी! सब ओर फैला हुआ यह अज्ञानमय कला अन्धकार मेरे निकट आ पहुंचा है। तुम इसे ऋण की भाँति दूर करो जैसे धन देकर अपने भक्तों के ऋण दूर करती हो, उसी प्रकार ज्ञान देकर इस अज्ञान को भी मिटा दो| 

हे रात्रिदेवी! तुम दूध देने वळील गौ के समान हो। मैं तुम्हारे समीप आकर स्तुति आदि से तुम्हें अपने अनुकूल करता हूँ। परम व्योमस्वरूप परमात्मा की पुत्री तुम्हारी कृपा से मैं काम आदि शत्रुओं को जीत चुका हूँ, तुम स्तोम की भाँती मेरे इस हविष्य को भी ग्रहण करो।

॥ इति ऋग्वेदोक्तं रात्रिसूक्तं समाप्तं ॥

 रात्रि सूक्तं, दुर्गा शप्तशती वेदोक्तं रात्रि सूक्तं, Durga Saptashati Vedoktam Ratri Suktam.

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