Mahalakshmi Kavacham with lyrics | महालक्ष्मी कवच | महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का शक्तिशाली उपाय |
अगर किसी प्रकार का भय सता रहा हो, नकारात्मक उर्जाओं के कारण परेशानी बनी हुई है तो ऐसे में कवच/kawach का पाठ बहुत उपयोगी होते हैं |
कवच मंत्र एक प्रकार के सुरक्षा मंत्र हैं जो स्पष्ट रूप से भगवान से हमारी रक्षा करने का अनुरोध करते हैं। इसके पाठ से सुरक्षा के साथ ही सफलता भी प्राप्त होती है |
विभिन्न देवी देवताओं के हिसाब से अलग अलग कवच होते हैं | जो जिनकी भक्ति करते हैं उन्हें उस kavach का पाठ करना चाहिए | ये अत्यंत ही शक्तिशाली होते हैं और संकटों से बचाते हैं, दुर्भाग्य को दूर करते हैं, बुरी शक्तियों से बचाते हैं, साहस और शक्ति प्रदान करते हैं |
महालक्ष्मी की कृपा से इस भौतिक संसार को सफलता पूर्वक भोगा जा सकता है | महालक्ष्मी कवच अत्यंत ही शक्तिशाली मंत्रो से बना है जिसके पाठ से समस्त भौतिक सुख सुविधाओं को भक्त प्राप्त कर सकते हैं |
आइये जानते हैं महालक्ष्मी कवच/Mahalakshmi kavach :
||श्री गणेशाय नमः ।।
अस्य श्रीमहालक्ष्मीकवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दः
महालक्ष्मीर्देवता महालक्ष्मीप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
इन्द्र उवाच ।
समस्तकवचानां तु तेजस्वि कवचोत्तमम् ।
आत्मरक्षणमारोग्यं सत्यं त्वं ब्रूहि गीष्पते ॥१॥
श्रीगुरुरुवाच ।
महालक्ष्म्यास्तु कवचं प्रवक्ष्यामि समासतः ।
चतुर्दशसु लोकेषु रहस्यं ब्रह्मणोदितम् ॥२॥
ब्रह्मोवाच ।
शिरो मे विष्णुपत्नी च ललाटममृतोद्भवा ।
चक्षुषी सुविशालाक्षी श्रवणे सागराम्बुजा ॥३॥
घ्राणं पातु वरारोहा जिह्वामाम्नायरूपिणी ।
मुखं पातु महालक्ष्मीः कण्ठं वैकुण्ठवासिनी ॥४॥
स्कन्धौ मे जानकी पातु भुजौ भार्गवनन्दिनी ।
बाहू द्वौ द्रविणी पातु करौ हरिवराङ्गना ॥५॥
वक्षः पातु च श्रीर्देवी हृदयं हरिसुन्दरी ।
कुक्षिं च वैष्णवी पातु नाभिं भुवनमातृका ॥६॥
Mahalakshmi Kavacham with lyrics | महालक्ष्मी कवच | महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का शक्तिशाली उपाय |
कटिं च पातु वाराही सक्थिमनी देवदेवता ।
ऊरू नारायणी पातु जानुनी चन्द्रसोदरी ॥७॥
इन्दिरा पातु जङ्घे मे पादौ भक्तोनमस्कृता ।
नखान् तेजस्विनी पातु सर्वाङ्गं करूणामयी ॥८॥
ब्रह्मणा लोकरक्षार्थं निर्मितं कवचं श्रियः ।
ये पठन्ति महात्मानस्ते च धन्या जगत्त्रये ॥९॥
कवचेनावृताङ्गनां जनानां जयदा सदा ।
मातेव सर्वसुखदा भव त्वममरेश्वरी ॥१०॥
भूयः सिद्धिमवाप्नोति पूर्वोक्तं ब्रह्मणा स्वयम् ।
लक्ष्मीर्हरिप्रिया पद्मा एतन्नामत्रयं स्मरन् ॥११॥
नामत्रयमिदं जप्त्वा स याति परमां श्रियम् ।
यः पठेत्स च धर्मात्मा सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥१२॥
।। इति श्रीब्रह्मपुराणे इन्द्रोपदिष्टं महालक्ष्मीकवचं सम्पूर्णम् ।।
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