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Shukra Ka Kumbh Rashi Mai Gochar Ka Rashifal

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Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram

Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram, स्वधा स्तोत्र पूर्वजों के आशीर्वाद को आकर्षित करने के लिए, पितृ दोष उपाय, पूर्वजों के अभिशाप का सबसे अच्छा उपाय, छिपी बाधाओं का समाधान, स्वधा स्तोत्रम के गीत और अंग्रेजी में अर्थ।

Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram: "स्वधा स्तोत्रम" अपने आप में पूर्ण है किसी भी प्रकार के पितृ दोष से बाहर आने के लिए | अगर आपको लगता है की आपके काम में बहुत अड़चने आ रही है, चौदस या  अमावस्या को ज्यादा परेशानी आती है, दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ रहा है | हर शुभ काम में कुछ न कुछ समस्या आती है तो ऐसे में हो सकता है की आप पितृ दोष से ग्रस्त हो |

ऐसे में "स्वधा स्त्रोत्रम/Swadha Strotram बहुत ही कारगर उपाय होता है | 

Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram, स्वधा स्तोत्र पूर्वजों के आशीर्वाद को आकर्षित करने के लिए, पितृ दोष उपाय, meaning in hindi
Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram

Read in english about best remedy of Ancestor curses

आइये जानते हैं स्वधा स्त्रोत्रम के पाठ के फायदे क्या हैं ?

  1. इससे पितृ दोष दूर होता है |
  2. अज्ञात भय से छुटकारा मिलता है |
  3. अगर स्वप्न में पितृ दिख रहे हो तो भी इसके पाठ से आपको लाभ होगा |
  4. जिनका विवाह पितृ दोष के कारण नहीं हो पा रहा हो उनके रास्ते खुलेंगे |
  5. जिनको संतान होने में परेशानी आ रही हो उन्हें लाभ होगा |
  6. शारीरिक और मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिलेगा |
  7. आय के स्त्रोत खुलेंगे और हम अपने जिम्मेदारियों को सफलता पूर्वक पूरा कर पायेंगे |

तो आइये पाठ करते हैं स्वधा स्त्रोत्रम का | Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram


सुनिए YouTube में 

॥ स्वधास्तोत्रम् ॥

ब्रह्मोवाच –

स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नरः ।

मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत् ॥ १ ॥


स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत् ।

श्राद्धस्य फलमाप्नोति कालतर्पणयोस्तथा ॥ २ ॥ Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram


श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं यः शृणोति समाहितः ।

लभेच्छ्राद्धशतानाञ्च पुण्यमेव न संशयः ॥ ३ ॥


स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।

प्रियां विनीतां स लभेत्साध्वीं पुत्रं गुणान्वितम् ॥ ४ ॥Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram


पितॄणां प्राणतुल्या त्वं द्विजजीवनरूपिणी ।

श्राद्धाधिष्ठातृदेवी च श्राद्धादीनां फलप्रदा ॥ ५ ॥


बहिर्मन्मनसो गच्छ पितॄणां तुष्टिहेतवे ।

सम्प्रीतये द्विजातीनां गृहिणां वृद्धिहेतवे ॥ ६ ॥ Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram


नित्यानित्यस्वरूपासि गुणरूपासि सुव्रते ।

आविर्भावस्तिरोभावः सृष्टौ च प्रलये तव ॥ ७ ॥


ॐ स्वस्ति च नमः स्वाहा स्वधा त्वं दक्षिणा तथा ।

निरूपिताश्चतुर्वेदे षट्प्रशस्ताश्च कर्मिणाम् ॥ ८ ॥ Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram


पुरासीत्त्वं स्वधागोपी गोलोके राधिकासखी ।

धृतोरसि स्वधात्मानं कृतं तेन स्वधा स्मृता ॥ ९ ॥


इत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके च संसदि ।

तस्थौ च सहसा सद्यः स्वधा साविर्बभूव ह ॥ १० ॥


तदा पितृभ्यः प्रददौ तामेव कमलाननाम् ।

तां संप्राप्य ययुस्ते च पितरश्च प्रहर्षिताः ॥ ११ ॥Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram


स्वधा स्तोत्रमिदं पुण्यं यः शृणोति समाहितः ।

स स्नातः सर्वतीर्थेषु वेदपाठफलं लभेत् ॥ १२ ॥


॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे प्रकृतिखण्डे ब्रह्मा कृतम् स्वधास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

Hindi Meaning of Swadha Strotram Lyrics:

अर्थ- ब्रह्माजी बोले

  1. स्वधा शब्द के उच्चारण मात्र से मानव तीर्थ स्नान हो जाता है। वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर वाजपेय यज्ञ के फल का अधिकरी हो जाता है॥
  2. स्वधा,स्वधा,स्वधा, – इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण किया जाये तो श्राद्ध, काल और तर्पण के पुरुष को प्राप्त हो जाते हैँ|
  3. श्राद्ध के समय  जो पुरुष पूर्ण तन्मय होकर स्वधा स्तोत्र का श्रवण करता है,वह सौ श्राद्धो का पुण्य पा लेता है, इसमें संशय नहीं है
  4. जो मानव स्वधा, स्वधा, स्वधा इस पवित्र नाम का त्रिकाल सन्ध्या के समय पाठ करता है, उसे विनीत, पतिव्रता एवं प्रिय पत्नी प्राप्त होती है तथा गुणी पुत्र प्राप्त होता है।
  5. देवि ! तुम पितरों के लिये प्राणतुल्या और ब्राह्मणोँ के लिये जीवन स्वरूपिणी हो। तुम्हेँ श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। तुम्हारी ही कृपा से श्राद्ध और तर्पण आदि के फल मिलते हैँ।
  6. दवि ! तुम पितरोँ की तुष्टि, द्विजातियोँ की प्रीति तथा गृहस्थोँ की अभिवृद्धि के लिये मुझ ब्रह्मा के मन से निकल कर बाहर आ जाओ ।
  7. सुव्रते! तुम नित्य हो तुम्हारा विग्रह नित्य और गुणमय है। तुम सृष्टि के समय प्रकट होती हो और प्रलयकाल में तुम्हारा तिरोभाव हो जाता है
  8. तुम ॐ, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा एवं दक्षिणा हो॥ चारों वेदों द्वारा तुम्हारे इन छः स्वरूपों का निरूपण किया गया है, कर्मकाण्डी लोगों में इन छहों की बड़ी मान्यता है।
  9. हे देवि ! तुम पहले गोलोक में स्वधा नाम की गोपी थी और राधिका की सखी थी, भगवान श्री कृष्ण ने अपने वक्षः स्थल पर तुम्हें धारण किया, इसी कारण तुम “स्वधा” नाम से जानी गयी॥
  10. इस प्रकार देवी स्वधा की महिमा गा कर ब्रह्मा जी अपनी सभा में विराजमान हो गये। इतने में सहसा भगवती स्वधा उन के सामने प्रकट हो गयी॥
  11. तब पितामह ने उन कमलनयनी देवी को पितरों के प्रति समर्पण कर दिया। उन देवी की प्राप्ति से पितर अत्यन्त प्रसन्न हो कर अपने लोक को चले गये॥
  12. यह भगवती स्वधा का पुनीत सतोत्र है। जो पुरुष समाहित चित्त से इस स्तोत्र का श्रवण करता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थोँ में स्नान कर लिया और वह वेदपाठ का फल प्राप्त कर लेता है॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे प्रकृतिखण्डे ब्रह्मा कृतम् स्वधास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

इस प्रकार श्री ब्रह्मवैवर्त महापुराण के प्रकृतिखण्ड में ब्रह्मा जी के द्वारा कहा गया “स्वधा स्तोत्र” सम्पूर्ण हुआ ॥

Pitru Dosh Nivaran Ke liye Swadha Strotram, स्वधा स्तोत्र पूर्वजों के आशीर्वाद को आकर्षित करने के लिए, पितृ दोष उपाय, पूर्वजों के अभिशाप का सबसे अच्छा उपाय, छिपी बाधाओं का समाधान, स्वधा स्तोत्रम के गीत और अंग्रेजी में अर्थ।

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