Dasha Mahavidya Stotram, Dasha Mahavidya Stotram With Meaning In Hindi, क्या फायदे हैं दश महाविद्या स्तोत्र के |
Dasha Mahavidya Stotram: श्री दश महाविद्या स्तोत्र उन लोगों के लिए विशेष लाभप्रद है जो लोग महाशक्ति के विभिन्न रूपों की उपासना एक साथ करना चाहते हैं |
देवी भक्तों के लिए श्री दशमहाविद्या स्तोत्रम् एक वरदान है |
१० महाविद्या में आमतौर पर काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भैरवी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, बगलामुखी, धूमावती, मातंगी और कमला आते हैं |
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Dasha Mahavidya Stotram With Meaning In Hindi |
देवी के हर रूप की अपनी एक विशेषता है और भक्त अपनी जरुरत के अनुसार देवी की विभिन्न प्रकार से पूजा आराधना करते हैं |
माँ काली शत्रुओ और दुर्गुणों के नाश के लिए जानी जाती है, माँ तारा शत्रुओं का नाश करने के साथ सौन्दर्य और ऐश्वर्य की देवी है, माता सुंदरी अपने सौन्दर्य और आनंद के लिए जानी जाती है, भुवनेश्वरी माता भगवान् शिव की रचनात्मक शक्ति के लिए जानी जाती है, माता भैरवी अहंकार नाशिनी है, माँ छिन्नमस्ता दमनकारी शक्ति के लिए जानी जाती है, माता धूमावती दरिद्रता, दुःख, शोक और परेशानियों को दूर करने वाली देवी है, माँ बगलामुखी शत्रुनाशक हैं, मातंगी माता वाणी, संगीत, ज्ञान और कलाओं को नियंत्रित करती हैं और माँ कमला को भाग्य, सम्मान, पवित्रता और परोपकार की देवी माना जाता है | Dasha Mahavidya Stotram
- इस शक्तिशाली स्त्रोत्रम का पाठ जो मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में करते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
- चौदस की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इसका पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है। इसके नियमित पाठ से कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।
Lyrics of श्री दशमहाविद्या स्तोत्रम् का :
||दशमहाविद्या स्तोत्रम् ||
श्रीपार्वत्युवाच -
नमस्तुभ्यं महादेव! विश्वनाथ ! जगद्गुरो ! ।
श्रुतं ज्ञानं महादेव ! नानातन्त्र तवाननत् ॥
इदानीं ज्ञानं महादेव ! गुह्यस्तोत्रं वद प्रभो ! ।
कवचं ब्रूहि मे नाथ ! मन्त्रचैतन्यकारणम् ॥
मन्त्रसिद्धिकरं गुह्याद्गुह्यं मोक्षैधायकम् ।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति ज्ञात्वा विद्यां महेश्वर ! ॥Dasha Mahavidya Stotram
श्री शिव उवाच -
दुर्लभं तारिणीमार्गं दुर्लभं तारिणीपदम् ।
मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ॥
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।
क्रियासाधनकं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ॥
तव प्रसादाद्देवेशि! सर्वाः सिद्ध्यन्ति सिद्धयः ।
ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि |
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ||१|| Dasha Mahavidya Stotram
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे |
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ||२||
जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् |
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ||३||
हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् |
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ||४|| Dasha Mahavidya Stotram
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् |
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ||५||
मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् |
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ||६||
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् |
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ||७|| Dasha Mahavidya Stotram
श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् |
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ||८||
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् |
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ||९||
श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् |
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ||१०|| Dasha Mahavidya Stotram
त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् |
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ||११||
सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् |
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ||१२||
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् |
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ||१३|| Dasha Mahavidya Stotram
विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् |
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ||१४||
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् |
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ||१५||
भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिव्हां सुरेश्वरीम् |
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ||१६|| Dasha Mahavidya Stotram
त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् |
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ||१७||
कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् |
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ||१८||
सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् |
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ||१९|| Dasha Mahavidya Stotram
इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् |
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ||२०||
कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे ।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ॥
त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धि स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ।
चतुर्दश्यां निशाभागे निशि भौमेऽष्टमीदिने ॥
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्र सिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि तन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तवपाठाद्भुजङ्गिनी ॥ Dasha Mahavidya Stotram
॥ इति मुण्डमालातन्त्रोक्त पञ्चदशपटलान्तर्गतं दशमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Meaning of Dashmahavidya Strotram In Hindi:
शिव ने कहा- तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवी ! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।
हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।
हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है। Dasha Mahavidya Stotram
तुम मुण्डमाला धारण करती हो। तुम हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।
तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।
तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है। Dasha Mahavidya Stotram
तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।
तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।
तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।
हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो। Dasha Mahavidya Stotram
तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।
तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं। Dasha Mahavidya Stotram
हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।
मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।
चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।
जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।
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