Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Astavakra Geeta in Hindi

Latest Astrology Updates in Hindi

Shivratri Ko Kya Kare Jyotish Ke Hisab Se

Mahashivratri kab hai 2025 mai, क्या करे शिवरात्रि को, कैसे कर सकते है शिव पूजा, किस प्रकार की पूजाए संभव है शिवरात्रि मे, समस्याओं का समाधान महाशिवरात्रि मे. Mahashivratri 2025: हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार शिवरात्रि एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण रात्रि होती है, साधनाओ को करने हेतु महाशिवरात्रि एक शक्तिशाली रात्रि मानी गई है. भौतिक इच्छाओं को पूरी करना हो या फिर अध्यात्मिक, शिवरात्रि बहुत महत्तवपूर्ण समय होता है अनुष्ठानो को करने के लिए | ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि की दिव्य रात्रि में की गई पूजा से  हजारो वर्षों की पूजा का फल मिलता है | इस साल २०२५ में शिवरात्रि को महाकुम्भ का स्नान भी होगा | सन 2025 में महाशिवरात्रि 26 फ़रवरी बुधवार को है, चतुर्दशी तिथि 26 तारीख को दिन में लगभग 11:10 बजे से शुरू हो जायेगी और 27 तारीख को सुबह लगभग 8:56 बजे तक रहेगी | Shivratri Ko Kya Kare Jyotish Ke Hisab Se यह दिव्य रात्रि पुरुष, स्त्री, प्रेमी, रोगी सभी के लिए उपयोगी है क्योंकि शिवरात्रि को हम अपनी किसी भी मनोकामना के लिए अनुष्ठान कर सकते हैं। शिवरात्रि की रात पूजा और ध्यान करने से पाप...

Ashtavakra Geeta Bhaag 3

अष्टावक्र गीता भाग-3, राजा जनक को ज्ञान होने के उनके विचारों को सुनके अष्टावक्र जी ने क्या कहा ? अष्टावक्र गीता के भाग 2 में हमने जाना कि राजा जनक को ज्ञान होने के बाद उनके अंदर से किस प्रकार के विचार स्फुरित हुए उनके विचार सुनने के बाद अष्टावक्र जी राजन की स्थिति को सही तरीके से जांचना चाहते थे की कहीं राजा को बौद्धिक भ्रम तो नहीं हुआ है या फिर वास्तव में आत्मज्ञान हुआ है और इसीलिए उन्होंने कुछ प्रश्न किये और उन्हें कुछ बातें बताई जिसका वर्णन अष्टावक्र गीता के भाग 3 में दिया गया है तो आइए जानते हैं की अष्टावक्र जी क्या कहते हैं | Ashtavakra Geeta Bhaag 3 Astavakra Geeta in Hindi (Third Lesson): अद्वैत अविनाशी आत्मा को यथार्थ में पहचान करके तुझ आत्मज्ञानी धीर को धन संग्रह करने में प्रीति क्यों है? ||1|| आश्चर्य है आत्मा के अज्ञान से विषय का भ्रम होने पर वैसी ही प्रीति होती है जैसे सीपी के अज्ञान से चांदी के भ्रम में लोभ पैदा होता है ||2|| जिस आत्मा रूपी समुद्र में यह संसार तरंगों के समान स्फुरित होता है, वही मैं हूं, इस प्रकार जान करके तू क्यों दीनों की तरह दौड़ता है ? ||3|| यह स...

Ashtavakra Geeta Bhaag 2

अष्टावक्र गीता भाग-2, राजा जनक को ज्ञान होने के बाद जगत कैसा दिखा, सत्य कैसा दिखा ? इसके पहले वाले लेख में हम जान चुके हैं की अष्टावक्र जी ने राजा जनक के 3 सवालों के जवाब क्या दिए | वे तीन सवाल थे - ज्ञान कैसे होता है ?, मुक्ति कैसे होती है ?, वैराग्य कैसे होता है ?| अष्टावक्र जी ने विभिन्न उदाहरणों से राजा जनक को सत्य का ज्ञान कराया | सांसारिक विषयो की सत्यता बताई, सुख और शांति का रास्ता बताया, चित्त स्थिरता का महत्त्व बताया, वास्तविक धर्म बताया | राजा जनक की पात्रता इतनी अद्भुत थी की उपदेश सुनते हुए ही वो समाधि की अवस्था को प्राप्त हो गए | पढ़िए Ashtavakra Geeta Bhaag-1 अब आइये अष्टावक्र गीता के दुसरे अध्याय को सुनते हैं जिसमे की राजा जनक को ज्ञान होने के बाद के अनुभूति का वर्णन है |  Ashtavakra Geeta Bhaag 2 Astavakra Geeta in Sanskrit (Second Lesson): जनक उवाच –  अहो निरंजनः शान्तो बोधोऽहं प्रकृतेः परः। एतावंतमहं कालं मोहेनैव विडम्बितः॥१॥ यथा प्रकाशयाम्येको देहमेनो तथा जगत्। अतो मम जगत्सर्वम- थवा न च किंचन॥२॥ सशरीरमहो विश्वं परित्यज्य मयाऽधुना। कुतश्चित् कौशलादेव परम...

Ashtavakra Geeta Bhaag 1

अष्टावक्र गीता भाग-1, ज्ञान कैसे होता है ?, मुक्ति कैसे होती है ?, वैराग्य कैसे होता है ?, Ashtavakra Geeta lesson 1. इसके पहले वाले लेख में हम जान चुके हैं की अष्टावक्र जी का नाम कैसे पड़ा , कैसे उन्होंने पंडितो को कारागार से मुक्त कराया, कैसे वो राजा जनक के गुरु बने | आइये अब आगे बढ़ते हैं और अष्टावक्र गीता के प्रथम अध्याय की और बढ़ते हैं | अष्टावक्र गीता की शुरुआत होती है राजा जनक के 3 प्रश्न से : ज्ञान कैसे होता है ? मुक्ति कैसे होती है ? वैराग्य कैसे होता है ? इसके जवाब में अष्टावक्र जी ने राजा जनक को विभिन्न तरीके से उपदेश दिया जिसमे की उन्होंने सांसारिक विषयो को छोड़ने का कारण बताया, खुद का महत्त्व बताया, सुख और शांति का रास्ता बताया, चित्त स्थिरता का महत्त्व बताया | अष्टावक्र जी ने राजन को बताया की वो किसी से भिन्न नहीं हैं , वास्तविक धर्म क्या है ये बताया, बंधन को समझाया है| अष्टावक्र जी ने राजा जनक को अकर्ता होने का उपदेश दिया, अपने शुद्ध रूप का चिंतन करने को कहा | राजा जनक की पात्रता इतनी अद्भुत थी की गुरूजी से सुनते हुए ही वो समाधि की अवस्था को प्राप्त हो गए | तो आइये जानते ...